रोडीज 5’ और ‘बिग बॉस 2’ के विजेता अभिनेता आशुतोष कौशिक 12 साल बाद भी अपनी एक गलती की सजा भुगत रहे हैं। 2009 में शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में उनको पुलिस ने पकड़ लिया था।अब उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में ‘भूल जाने के अधिकार’ के तहत एक याचिका दायर की है। जिस पर कल हुईसुनवाई में उन्होंने इंटरनेट से उन वीडियो, आर्टिकल्स और पोस्ट को हटाने की मांग की है, जो शराब पीकर गाड़ी चलाने के केस से जुड़े हैं। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 1 अप्रैल की तारीख तय की है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसारआशुतोष कौशिक चाहते हैं कि अदालत उन्हें “राइट टू बी फ़ॉरगॉटेन” यानी ‘भुला दिए जाने का अधिकार’दे। उन्होंने याचिका में कहा है कि उनकी एक गलती का उनकी जिंदगी पर अब तक असर पड़ रहा है, जो उन्होंने “अनजाने में एक दशक से भी पहले की थी”।
आशुतोष कौशिक का नाम 2007 में छोटे पर्दे पर छाया, जब वो एमटीवी रोडीज के पांचवें सीजन के विजेता बने। एक साल बाद वो एक और शो बिग बॉस में भी विजेता बन सुर्खियों में आए थे। वो कहते हैंइन दोनों जीतों के बाद उन्हें सारे भारत से प्यार और प्रशंसामिली।मगर नाम के एक साल बाद ही बदनामी भी हुई, जब उन्हें शराब पीकर ड्राइव करते पकड़ा गया। अदालत ने उनपर ढाई हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया और ड्राइविंग लाइसेंस एक साल के लिए सस्पेंड कर दिया। अदालत ने उन्हें सारे दिन कोर्ट में ही रहने का भी आदेश दिया। ये घटना हेडलाइन बनी और वो सुर्खियां, तस्वीरें, वीडियो आज तक इंटरनेट पर मौजूद हैं।
आशुतोष का कहना है किइस गलती की उन्हें कीमत चुकानी पड़ रही है। निजी जीवन में भी, और पेशे में भी।उन्होंने कहा, मैं तब 27 साल का था। जो भी चाहता था मिला। मेरे पिता गुज़र गए थे और मुझे राह दिखाने वाला कोई नहीं था। मैं नादान था और एक ग़लती कर बैठा, जिसकी मुझे सज़ा मिली। पर अब मैं 42 का हूँऔर मुझे लगता है आज भी मैं उस किए की सज़ा भुगत रहा हूं।आशुतोष कौशिक कहते हैं, उस घटना के बाद लोग उनसे किनारा करने लगे।मेरे बारे में लोग पहली राय जो बनाते हैं वो बुरी होती है। मेरा काम छूट गया, शादी के लिए कई बार ख़ारिज कर दिया गयाऔर जब भी मैं घर बदलता हूँ, पड़ोसी मुझे अलग नज़रों से देखते हैं।
हालांकि जानकारों का कहना है कि अभी भारत में लोगों के लिए भुला दिए जाने के अधिकार का इस्तेमाल करना आसान नहीं है। गूगल और माइक्रोसॉफ़्ट के लिए इंटरनेट एक बहुत बड़ा मंच है जहाँ से सूचनाएँ मिलती हैं। इसके बाद विकीपीडिया, मीडियम और फ़ेसबुक व ट्विटर जैसे अन्य प्लेटफ़ॉर्म्स हैंऔर दसियों हज़ार ब्लॉग हैं। उनका कहना है कि गूगल बहुत आसानी से और स्वच्छ तरीक़े से किसी यूआरएल और फ्रेजेज को ब्लॉक कर सकता है, जो वह यूरोपीय यूनियन में करता है, जिसे क़ानूनी मंज़ूरी मिली है। मगर भारत मेंइस दिग्गज कंपनी को लगता है कि ऐसे आग्रहों की बाढ़ आ जाएगी।
जानकारों का यह भी कहना है कि “भुला दिए जाने का अधिकार” या “मिटा दिए जाने का अधिकार” का साधारण अर्थ ये है कि आपके बारे में जो भी व्यक्तिगत जानकारियां सार्वजनिक हैं, उन्हें इंटरनेट से हटा दिया जाए। इस अधिकार को यूरोपीय संघ में मान्यता तो मिली है, लेकिनवहां भी पूरी तरह से ऐसा नहीं है। मगर भारत के लिए ये बिलकुल नई बात है, जिसके बारे में अभी तक कोई क़ानून नहीं है।
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