झारखंड, पलामू: 28 फरवरी 2025: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पलामू जिले में 251 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया है। इस फैसले ने स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार के कार्यों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन कर्मचारियों की नियुक्ति 2010 में एक विज्ञापन के तहत की गई थी, जो अब विवादों के घेरे में है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड राज्य सरकार द्वारा 29 जुलाई 2010 को आयोजित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया को अवैध और असंवैधानिक करार दिया। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि यह भर्ती प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-16 का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि छह महीने के भीतर इन पदों के लिए नया विज्ञापन जारी किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ का फैसला
यह फैसला प्रार्थी अमृत यादव की याचिका पर सुनाया गया था। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा, “असंवैधानिक प्रक्रिया के माध्यम से की गई नियुक्तियों को संरक्षित नहीं किया जा सकता है, भले ही उम्मीदवारों ने वर्षों तक काम किया हो।” न्यायालय ने यह भी कहा कि कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द करने से पहले उनका पक्ष नहीं सुना गया, लेकिन यह प्रक्रिया फिर भी असंवैधानिक पाई गई।
नौकरी से बर्खास्तगी और विवाद
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पलामू जिले के डीसी ने 251 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया। इस निर्णय के बाद सभी बर्खास्त कर्मचारियों ने सरकार और प्रशासन के फैसले पर सवाल उठाए हैं और अपनी बहाली की मांग की है।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह छह महीने के अंदर नये विज्ञापन जारी कर नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करें। हालांकि, यह फैसला कर्मचारियों के लिए एक कठिन परिस्थिति पैदा कर चुका है, क्योंकि वे कई वर्षों तक काम करने के बाद अचानक बिना नौकरी के हो गए हैं।
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