मेदिनीनगर, पलामू – पलामू जिले में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने वाले बी.आर.पी (ब्लॉक रिसोर्स पर्सन) और सी.आर.पी (क्लस्टर रिसोर्स पर्सन) अब खुद को शोषित और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। बी.आर.पी.-सी.आर.पी. महासंघ ने जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) सह जिला कार्यक्रम पदाधिकारी के मनमाने रवैये के खिलाफ खुला मोर्चा खोलते हुए विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया है। इस क्रम में महासंघ के सदस्यों ने 16 अक्टूबर 2025 को डायट, मेदिनीनगर में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम का बहिष्कार कर अपनी नाराजगी जताई।
20 वर्षों से रीढ़, अब उपेक्षित
बी.आर.पी और सी.आर.पी सदस्यों का दावा है कि वे पिछले दो दशकों से झारखंड की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ के रूप में कार्य कर रहे हैं। शिक्षा योजनाओं के क्रियान्वयन, शिक्षकों के प्रशिक्षण, और सरकारी नीतियों को धरातल पर उतारने में इनकी प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन हाल के दिनों में पलामू जिला शिक्षा कार्यालय के अंतर्गत कार्य प्रणाली में मनमानी, भेदभाव और भ्रष्टाचार ने उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान कर दिया है।
अवैध वसूली का दबाव और उपस्थिति में गड़बड़ी
महासंघ का आरोप है कि वर्तमान डीईओ के कार्यभार संभालने के बाद से बी.आर.पी.-सी.आर.पी. पर विद्यालयों से अवैध वसूली करने का दबाव बनाया जा रहा है। जो इस दबाव का विरोध करता है, उसकी उपस्थिति रिपोर्ट जानबूझकर राज्य कार्यालय को भेजने में देरी की जाती है, जिससे उनका वेतन रुक जाता है और मानसिक उत्पीड़न होता है।
त्योहारी अग्रिम वेतन का भी नहीं मिला लाभ
राज्य सरकार ने दीपावली और छठ पर्व को ध्यान में रखते हुए अक्टूबर महीने का अग्रिम वेतन देने का निर्देश जारी किया था, जिससे कि राज्य के शिक्षाकर्मी त्योहार अच्छे से मना सकें। लेकिन पलामू जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा इस आदेश की अनदेखी करते हुए बी.आर.पी.-सी.आर.पी. की उपस्थिति रोक दी गई, जिसके कारण उन्हें अग्रिम वेतन नहीं मिल सका। यह एक गंभीर प्रशासनिक लापरवाही मानी जा रही है।
पुराने मुद्दे भी अनसुलझे
महासंघ के नेताओं ने यह भी कहा कि यह पहला अवसर नहीं है जब प्रशासन ने बी.आर.पी.-सी.आर.पी. के हितों की अनदेखी की हो। इससे पूर्व एक दिवंगत सी.आर.पी. को कैबिनेट से स्वीकृत लाभ दिलाने की मांग भी महीनों से लंबित है। इसके अलावा ईपीएफ कटौती में भी अनियमितताएं पाई गई हैं, जिस पर कोई ठोस विभागीय कार्रवाई नहीं हुई है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम का बहिष्कार
डायट, मेदिनीनगर में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का बी.आर.पी.-सी.आर.पी. महासंघ द्वारा पूरी तरह से बहिष्कार किया गया। आंदोलनकारी सदस्यों का कहना है कि जब तक जिला शिक्षा कार्यालय की कार्यप्रणाली में सुधार नहीं किया जाता, वे किसी भी तरह के सरकारी कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगे।
“पोल खोलो अभियान” की चेतावनी
महासंघ ने साफ शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि जिला शिक्षा कार्यालय की मनमानी और भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगाई गई, तो वे जल्द ही “पोल खोलो अभियान” की शुरुआत करेंगे। इस अभियान के तहत वे जिला से लेकर राज्य स्तर तक आंदोलन करेंगे और सभी जनप्रतिनिधियों, मीडिया तथा उच्चाधिकारियों को पूरे मामले से अवगत कराएंगे।
नेताओं का बयान
महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष पंकज शुक्ला ने कहा:
“बी.आर.पी.-सी.आर.पी. शिक्षक नहीं बल्कि शिक्षा के सशक्त स्तंभ हैं। हमारे साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ अब चुप नहीं बैठेंगे। हमने सिस्टम को मजबूत किया है, लेकिन अब यही सिस्टम हमारे खिलाफ हो गया है।”
जिलाध्यक्ष किशोर दूबे ने बताया:
“हमने कई बार जिला शिक्षा पदाधिकारी से मिलकर समस्याओं को रखा, लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। अब हम मजबूर होकर आंदोलन का रास्ता अपना रहे हैं।”
महासचिव ओम प्रकाश सिंह ने कहा:
“हम सिर्फ अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं। किसी भी भ्रष्ट गतिविधि में शामिल नहीं होंगे, चाहे उसके लिए हमें कितनी भी बड़ी कीमत चुकानी पड़े।”
बड़ी संख्या में हुआ समर्थन
प्रशिक्षण बहिष्कार और विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों की संख्या में बी.आर.पी.-सी.आर.पी. ने भाग लिया। इस मौके पर मौजूद प्रमुख सदस्यों में निम्न नाम शामिल हैं:
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मुकेश तिवारी, संतोष सिंह, विजय दूबे, अनूप सिन्हा, प्रभात दूबे
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जयप्रकाश कुमार, एजाज अहमद, संतन सिंह, प्रमोद सिंह, परमेन्द्र सिंह
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राजदेव विश्वकर्मा, दीपक दूबे, बैजनाथ सिंह, जितेंद्र सिंह, राम प्रवेश राम
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संदीप कुमार, महबूब अली, मनोज मेहता, पंकज सिंह, नागेंद्र पांडेय, अजय कुमार सिंह, ओंकारनाथ पाठक आदि।
इन सभी सदस्यों ने मिलकर एकजुटता दिखाई और प्रशासन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।
क्या कहता है नियम और प्रशासन?
राज्य सरकार द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार प्रत्येक जिला शिक्षा पदाधिकारी को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के हितों की रक्षा करनी होती है। इसके अंतर्गत समय पर वेतन भुगतान, पारदर्शी उपस्थिति प्रबंधन और कर्मचारियों की शिकायतों का समाधान शामिल है। यदि इन नियमों की अवहेलना की जाती है, तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जा सकती है।
आगे की रणनीति
महासंघ ने स्पष्ट किया है कि अगर जल्द ही उनकी मांगों पर सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया, तो वे आंदोलन को और व्यापक रूप देंगे। इसमें प्रेस कॉन्फ्रेंस, सोशल मीडिया अभियान, धरना प्रदर्शन, और जनप्रतिनिधियों से मुलाकात जैसे कदम शामिल होंगे।
निष्कर्ष
पलामू जिले में बी.आर.पी.-सी.आर.पी. महासंघ द्वारा उठाया गया यह कदम सिर्फ अपने अधिकारों की मांग नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग भी है। लंबे समय से कार्यरत इन कर्मियों के साथ यदि न्याय नहीं होता, तो यह राज्य के शिक्षा तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है।
सरकार और जिला प्रशासन को चाहिए कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से लें और संवेदनशीलता के साथ समाधान सुनिश्चित करें, ताकि न केवल बी.आर.पी.-सी.आर.पी. का मनोबल बना रहे, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था भी सुदृढ़ बनी रहे।
यदि आप इस मुद्दे से संबंधित अपने सुझाव, शिकायतें या विचार साझा करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कॉमेंट सेक्शन या संपर्क पृष्ठ पर जरूर लिखें।
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