October 16, 2025

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NPU में PhD प्रवेश परीक्षा नकल विवाद पर बढ़ा बवाल — आपसू ने उठाई आरोपी प्रोफेसरों को परीक्षा कार्य से दूर रखने की मांग

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#डाल्टनगंज: नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय (NPU) में पीएचडी प्रवेश परीक्षा 2023 से जुड़ा नकल प्रकरण अब नया मोड़ ले चुका है। यह मामला न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है, बल्कि उच्च शिक्षा में पारदर्शिता और नैतिकता की कसौटी पर भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

 

इस विवाद के बीच आखिल पलामू छात्र संघ (आपसू) ने कठोर रुख अपनाते हुए महामहिम राज्यपाल सह कुलाधिपति को पत्र भेजा है। पत्र के माध्यम से संगठन ने मांग की है कि जिन प्रोफेसरों के खिलाफ नकल प्रकरण में संलिप्तता की शिकायतें हैं, उन्हें जांच पूरी होने तक किसी भी परीक्षा या मूल्यांकन कार्य से तत्काल रोका जाए।

 

पृष्ठभूमि: कैसे शुरू हुआ NPU का PhD प्रवेश परीक्षा विवाद

 

नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय में वर्ष 2023 में आयोजित पीएचडी प्रवेश परीक्षा के दौरान नकल और अनुचित साधनों के प्रयोग की शिकायतें सामने आई थीं। कई छात्रों ने आरोप लगाया था कि परीक्षा में कुछ उम्मीदवारों को अनुचित तरीके से लाभ पहुंचाया गया।

यह मामला धीरे-धीरे मीडिया और छात्र संगठनों के माध्यम से सुर्खियों में आया और अंततः विश्वविद्यालय की सिंडिकेट बैठक तक पहुंच गया।

 

सिंडिकेट की 17वीं बैठक में इस मामले की गंभीरता को देखते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. सुल्ताना परवीन के खिलाफ जांच की संस्तुति की गई थी। हालांकि, जांच रिपोर्ट अब तक लंबित है, जिसके बावजूद उन्हें बार-बार परीक्षा से जुड़ी जिम्मेदारियां सौंपी जा रही हैं।

 

आपसू का आरोप — ‘जांच लंबित, फिर भी आरोपी प्रोफेसरों को परीक्षा कार्य में लगाया जा रहा है’

 

आखिल पलामू छात्र संघ (आपसू) के संयोजक राहुल कुमार दुबे ने कुलाधिपति को भेजे पत्र में कहा कि जब विश्वविद्यालय की सिंडिकेट ने जांच की अनुशंसा की थी, तब जांच पूरी होने से पहले संबंधित प्रोफेसरों को परीक्षा कार्य देना पूरी तरह अनुचित है।

 

उन्होंने कहा —

 

“जब मामला प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच चुका है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने भी रिपोर्ट तलब की है, ऐसे में आरोपी शिक्षकों को परीक्षा संबंधी कार्य सौंपना न केवल प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि यह विश्वविद्यालय की साख पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।”

 

PMO और UGC तक पहुंचा मामला — अब पारदर्शिता पर सवाल

 

सूत्रों के अनुसार, नकल प्रकरण की शिकायत सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच चुकी है। वहीं UGC ने भी विश्वविद्यालय प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है। इससे यह मामला और गंभीर हो गया है, क्योंकि यह केवल एक विश्वविद्यालय की नहीं, बल्कि पूरे राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता से जुड़ा प्रश्न बन गया है।

 

आपसू ने कहा है कि जब उच्च स्तर पर जांच प्रक्रिया चल रही है, तब भी विश्वविद्यालय प्रशासन का ऐसे प्रोफेसरों को परीक्षा कार्य में शामिल करना यह दर्शाता है कि पारदर्शिता को लेकर विश्वविद्यालय गंभीर नहीं है।

 

आपसू की प्रमुख मांगें:

 

आखिल पलामू छात्र संघ ने कुलाधिपति से तीन प्रमुख मांगें रखी हैं —

 

1. आरोपी प्रोफेसरों को किसी भी परीक्षा कार्य से तत्काल रोका जाए।

जांच पूरी होने तक इन्हें किसी भी प्रकार के मूल्यांकन, प्रश्नपत्र निर्माण या परीक्षा नियंत्रण से दूर रखा जाए।

 

 

2. जांच पूरी होने तक परीक्षा ड्यूटी से मुक्त रखा जाए।

ताकि जांच प्रक्रिया निष्पक्ष और निर्भीक हो सके, और कोई भी प्रभाव जांच को प्रभावित न कर सके।

 

 

3. दोष सिद्ध होने पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।

यदि जांच में दोष साबित होता है, तो विश्वविद्यालय प्रशासन को निलंबन या सेवा समाप्ति तक की कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी शिक्षक या अधिकारी इस तरह की गतिविधियों में संलिप्त न हो।

 

छात्र संगठन का सख्त रुख — “शुचिता और पारदर्शिता पर कोई समझौता नहीं”

 

राहुल कुमार दुबे ने अपने बयान में कहा कि आपसू छात्रों के अधिकारों और विश्वविद्यालय की शुचिता से कोई समझौता नहीं करेगा। उन्होंने कहा —

 

 “NPU छात्रों का केंद्र है, यहां शिक्षा की गुणवत्ता सर्वोपरि होनी चाहिए। लेकिन यदि कुछ लोग अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं, तो यह न केवल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है बल्कि विश्वविद्यालय की गरिमा को भी ठेस पहुंचाता है।”

 

 

 

उन्होंने यह भी कहा कि आपसू इस पूरे मामले की निगरानी करेगा और आवश्यकता पड़ने पर आंदोलन की राह भी अपनाएगा। उन्होंने राज्यपाल से उम्मीद जताई कि वे स्वयं हस्तक्षेप कर विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता को बनाए रखने की दिशा में ठोस कदम उठाएंगे।

 

विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल

आपसू का आरोप है कि NPU प्रशासन इस पूरे प्रकरण में निष्क्रिय भूमिका निभा रहा है। सिंडिकेट द्वारा जांच की संस्तुति के बावजूद, आरोपितों को परीक्षा कार्य सौंपा जा रहा है, जो न केवल नियमों के खिलाफ है बल्कि न्याय प्रक्रिया पर भी सवाल खड़ा करता है।

जानकारी के अनुसार, कुछ अधिकारी इस मामले को दबाने की कोशिश में हैं, ताकि विश्वविद्यालय की छवि पर आंच न आए। लेकिन छात्र संगठनों का कहना है कि सच्चाई को छिपाने से स्थिति और खराब होगी।

 

शिक्षा विशेषज्ञों की राय — “जांच प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए”

 

शिक्षा क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि यदि विश्वविद्यालय में इस तरह के आरोप लग रहे हैं तो जांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से की जानी चाहिए।

पूर्व विश्वविद्यालय प्राध्यापक डॉ. आर.पी. मिश्रा ने कहा —

 

“विश्वविद्यालय नकल प्रकरण जैसे मुद्दों पर समझौता नहीं कर सकता। यह उच्च शिक्षा की विश्वसनीयता का मामला है। यदि जांच में देरी या पक्षपात होता है, तो इससे छात्रों का विश्वास पूरी तरह टूट जाएगा।”

 

छात्रों में नाराज़गी — ‘भविष्य के साथ खिलवाड़’

 

विश्वविद्यालय के कई छात्रों ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि परीक्षा प्रक्रिया में गड़बड़ी होने से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया। कुछ छात्रों ने बताया कि उन्होंने पूरी ईमानदारी से परीक्षा दी थी, लेकिन अब उन्हें लगता है कि नकल करने वालों को अनुचित फायदा मिला।

 

छात्रों का कहना है कि यदि ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो आगे किसी को परीक्षा नियमों का डर नहीं रहेगा। उन्होंने भी आपसू की मांगों का समर्थन किया है।

 

राज्यपाल से निष्पक्ष जांच की उम्मीद

 

राज्यपाल सह कुलाधिपति से उम्मीद जताई जा रही है कि वे इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच का आदेश देंगे। छात्र संगठन का कहना है कि राज्यपाल के हस्तक्षेप से ही विश्वविद्यालय में पारदर्शिता की नई मिसाल स्थापित हो सकती है।

 

आपसू का चेतावनी भरा रुख — आंदोलन की तैयारी

 

आपसू संयोजक राहुल दुबे ने साफ शब्दों में कहा है कि यदि आरोपी प्रोफेसरों को परीक्षा कार्य से नहीं रोका गया, तो संगठन विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करेगा। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष केवल एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि शैक्षणिक मर्यादा की रक्षा के लिए है।

 

उन्होंने कहा —

 

“हम चाहते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले। यदि आरोपी प्रोफेसरों को बचाने की कोशिश की गई, तो आपसू सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेगा। हम छात्रों की आवाज को दबने नहीं देंगे।”

 

https://youtu.be/LmnnTRItIvk

 

निष्कर्ष — पारदर्शिता और जवाबदेही की परीक्षा

 

NPU का यह मामला सिर्फ एक नकल प्रकरण नहीं, बल्कि पूरे विश्वविद्यालय तंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही की परीक्षा बन गया है।

जहां एक ओर छात्र संगठन न्याय और शुचिता की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विश्वविद्यालय प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर जांच रिपोर्ट लंबित रहने के बावजूद आरोपी प्रोफेसरों को क्यों बचाया जा रहा है।

 

अब सभी की निगाहें महामहिम राज्यपाल और विश्वविद्यालय प्रशासन पर टिकी हैं कि वे इस विवाद को किस दिशा में ले जाते हैं — क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या मामला फाइलों में दबा रहेगा?

 

By Crime Free India News Desk
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स्थान: डाल्टनगंज, झारखंड

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