October 16, 2025

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Rally for Tiger – पलामू में गूंजी दहाड़! युवाओं ने निकाली बाघ बचाओ बाइक रैली

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मेदिनीनगर, पलामू: वन्यजीव संरक्षण की भावना को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से पलामू टाइगर रिज़र्व में इस वर्ष वन्यजीव सप्ताह (2 से 8 अक्टूबर) के मौके पर “Rally for Tiger – Save the Stripes” नाम से दो दिवसीय विशेष बाइक रैली का आयोजन किया गया। इस रैली में झारखंड के विभिन्न जिलों से आए बाइकर्स क्लबों के सदस्य, स्थानीय युवा, वन विभाग के अधिकारी-कर्मी और ग्रामीण समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए।

 

रैली का मुख्य उद्देश्य था — बाघ संरक्षण, वन्यजीव सुरक्षा और पर्यावरण के प्रति जन-जागरूकता फैलाना, साथ ही पलामू को पुनः ‘टाइगर कंट्री’ के रूप में पहचान दिलाना।

 

रैली की शुरुआत रांची से — संदेश पूरे राज्य तक

 

रैली की भव्य शुरुआत राजधानी रांची से हुई, जहाँ सुबह से ही बाइकर्स का उत्साह देखते ही बनता था। आधुनिक से लेकर पारंपरिक झंडों और बैनरों से सजी बाइक्स पर जब सवार युवा “Save Tiger, Save Forest, Save Future” के नारे लगाते हुए निकले, तो सड़क किनारे खड़े लोग तालियाँ बजाकर उनका स्वागत करने लगे।

 

बाइकर्स ने पूरे मार्ग में लोगों से संवाद स्थापित किया, बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को यह समझाया कि बाघ की सुरक्षा का मतलब केवल एक जानवर को बचाना नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना है।

 

 

पलामू टाइगर रिज़र्व की विशेष पहचान

 

पलामू टाइगर रिज़र्व भारत के सबसे पुराने टाइगर रिज़र्व में से एक है। यह देश का नौवां टाइगर रिज़र्व और झारखंड का एकमात्र टाइगर रिज़र्व है। इसकी स्थापना 1973 में “Project Tiger” के तहत की गई थी। लगभग 1129 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जंगल में बाघ, हाथी, तेंदुआ, भालू, हिरण, सांभर, जंगली सूअर, मोर और कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

 

इस रैली ने पलामू के जंगलों में मानव और प्रकृति के सहअस्तित्व का संदेश दिया। बाइकर्स ने न केवल बाघ संरक्षण का आह्वान किया, बल्कि यह भी दिखाया कि पर्यटन और पर्यावरण सुरक्षा एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।

 

उपनिदेशक का संदेश: “बाघ बचाओ, भविष्य बचाओ”

 

इस मौके पर पलामू टाइगर रिज़र्व के उपनिदेशक (IFS) प्रजेश जेना ने कहा —

 

> “भारत के कई टाइगर रिज़र्वों में से पलामू विशेष है। जब हम बाघ को बचाते हैं, तो हम केवल एक प्रजाति नहीं, बल्कि पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बचाते हैं। पलामू की पहचान जंगल, संस्कृति और समुदाय से जुड़ी है। इस रैली के माध्यम से हम युवाओं में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और जनसहभागिता बढ़ाना चाहते हैं।”

 

 

 

उन्होंने आगे कहा कि पलामू में बाघ संरक्षण का मतलब है – जंगल, जल, भूमि और जीवन की रक्षा करना। यही इस कार्यक्रम का असली उद्देश्य है।

 

संस्कृति और प्रकृति का संगम

 

रांची से पलामू तक की यात्रा में बाइकर्स ने कई ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों को पार किया —

 

बेतला नेशनल पार्क, जहाँ जंगल का घना सौंदर्य और वन्यजीवों की झलक ने सभी को मंत्रमुग्ध किया।

 

कैचकी संगम, जहाँ नदियों का मिलन और हरियाली ने यात्रा को और भी रोमांचक बना दिया।

 

पलामू किला, जो झारखंड की वीरता और इतिहास का प्रतीक है।

 

कमलदाह झील और बक्सा मोड़ स्थित मड हाउस, जो पर्यटकों और स्थानीय कलाकारों के लिए आकर्षण का केंद्र बने।

 

 

यात्रा के दौरान बाइकर्स ने गारू रेंज में आयोजित “प्राणी संरक्षण एवं वनदेवी पूजा महोत्सव” में भी हिस्सा लिया। यह आयोजन स्थानीय परंपरा और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। यहां ग्रामीणों ने बाघ और वनदेवी की पूजा कर यह संदेश दिया कि प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

 

पर्यटन स्थलों से संदेश: प्रकृति ही जीवन

 

रैली यहीं नहीं रुकी। बाइकर्स की टीम ने इसके बाद मिर्चिया फॉल, सुगा बंध, महुआडांड वुल्फ सेंचुरी, लोध फॉल (जो झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात है) और नेतरहाट की ओर बढ़ते हुए सफर जारी रखा।

 

इन स्थलों से गुज़रते हुए प्रतिभागियों ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि प्रकृति, पर्यटन और संरक्षण के बीच संतुलन ही भविष्य की कुंजी है।

 

हर पड़ाव पर स्थानीय ग्रामीणों ने उन्हें फूल-मालाओं से स्वागत किया। बच्चों ने “बाघ बचाओ – जंगल बचाओ” जैसे नारे लगाए। इस अभियान ने न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाई बल्कि पलामू के पर्यटन को भी एक नई पहचान दी।

 

स्थानीय सहभागिता और वन विभाग की भूमिका

 

रैली में वन विभाग की टीम, बेतला ईको-डेवलपमेंट कमिटी, स्थानीय युवाओं और बाइकर्स क्लबों की सक्रिय भागीदारी रही। इन सभी ने मिलकर कार्यक्रम को सफल बनाया।

 

वनकर्मियों ने प्रतिभागियों को बताया कि कैसे बाघों की ट्रैकिंग, कैमरा ट्रैप, और इको-टूरिज्म के माध्यम से पलामू में संरक्षण कार्य लगातार जारी है। वहीं स्थानीय समुदायों ने यह साझा किया कि जंगल उनके जीवन का आधार है, और बाघ की मौजूदगी उस संतुलन का प्रतीक है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच कायम रहना चाहिए।

 

जन-जागरूकता और सोशल मीडिया पर असर

 

इस रैली का प्रभाव केवल मैदान तक सीमित नहीं रहा। बाइकर्स और प्रतिभागियों ने पूरे अभियान को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X (Twitter), Instagram, Facebook और YouTube पर साझा किया, जिससे हजारों लोगों तक “Save the Stripes” का संदेश पहुँचा।

 

“#RallyForTiger, #SaveTheStripes, #PalamuTigerReserve, #WildlifeWeek2024” जैसे हैशटैग्स ट्रेंड करने लगे।

कई युवाओं ने इस पहल को “झारखंड में वन्यजीव संरक्षण का नया अध्याय” बताया।

 

रैली का प्रभाव — एक स्थायी संदेश

 

कार्यक्रम के समापन पर गारू रेंज में एक प्रतीकात्मक समारोह आयोजित किया गया, जहाँ सभी प्रतिभागियों ने सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि वे आगे भी बाघ और उसके आवास की रक्षा के लिए समाज में जागरूकता फैलाते रहेंगे।

 

रैली का समापन “अगर जंगल बचेगा, तो जीवन बचेगा” के नारे के साथ हुआ। इस आयोजन ने न केवल युवाओं के भीतर पर्यावरण के प्रति जागरूकता की नई चिंगारी जलाई, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि जब समाज, सरकार और समुदाय एक साथ आते हैं, तो परिवर्तन संभव है।

 

पलामू — फिर से ‘टाइगर कंट्री’ बनने की ओर

 

कभी पलामू को “टाइगर कंट्री” कहा जाता था, लेकिन समय के साथ बाघों की संख्या में कमी आई। अब वन विभाग, स्थानीय समुदाय और युवा मिलकर उस गौरव को फिर से लौटाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

 

बाइक रैली जैसी पहलें यह दिखाती हैं कि पलामू केवल एक स्थान नहीं, बल्कि एक आस्था, पर्यावरणीय संतुलन और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।

 

निष्कर्ष

 

“Rally for Tiger – Save the Stripes” केवल एक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक संदेश था —

कि बाघ हमारे जंगलों की आत्मा हैं, और जब तक बाघ जीवित हैं, तब तक हमारे जंगल भी जीवित रहेंगे।

 

यह रैली आने वाले समय में झारखंड और भारत के अन्य हिस्सों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

पलामू के इस अभियान ने दिखाया कि जब युवा आगे आते हैं, तो बदलाव निश्चित होता है।

 

मुख्य संदेश:

 

“जंगल बचाओ – बाघ बचाओ – जीवन बचाओ”

 

Report By Prince Shukla 

 

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