रांची, :- लंबे अरसे के बाद झारखंड में पंचायत चुनाव हो रहा है, लेकिन कुछ अधिकारियों की ना समझी व लापरवाही के कारण कई लोग इससे वंचित हो गए हैं। चुनाव जीतकर गांव की सरकार में भागीदारी का सपना टूट गया है। इसके लिए कई लोग अपने भाग्य को कोस रहे हैं तो कुछ अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं। राज्य में भोक्ता अनुसूचित जाति की श्रेणी में था। चतरा, लातेहार के अलावा कुछ अन्य क्षेत्रों में इसकी अच्छी आबादी है। विधानसभा से लेकर जिला परिषद एवं ग्राम पंचायतों में इस जाति का दबदबा रहा है। आठ अप्रैल को केंद्र से भोक्ता को अनुसूचित जाति की सूची से हटाकर अनुसूचित जनजाति में शामिल करने संबंधी गजट प्रकाशित हुआ। इसके ठीक आगले दिन नौ अप्रैल को राज्य में पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी गई।
अफसरों ने नहीं जारी की कोई स्पष्ट गाइडलाइन
अधिकारियों ने इस संबंध में कोई स्पष्ट गाइडलाइन न जारी करते हुए चुनावी प्रक्रिया को बहाल रखा। भोक्ता जाति के लोगों ने अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटों पर दावेदारी करते हुए नामांकन कराया। बाद में चतरा उपायुक्त ने इस संबंध में उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन मांगा। फिर भोक्ता को अनुसूचित जनजाति मानते हुए एससी सीटों पर से उनकी उम्मीदवारी खत्म कर दी। इससे लगभग तीन दर्जन सीटों पर चुनाव नहीं होने की नौबत आ गई। लेकिन मजे की बात तो यह है कि इतने गंभीर मसले पर भी वरीय अधिकारी कोई दिशा निर्देश जारी नहीं कर असमंजस की स्थिति बरकरार रखे हुए हैं। रामगढ़, लातेहार, हजारीबाग में भोक्ता को अनुसूचित जाति मानकर उनकी उम्मीदवारी को वैध मान लिया गया है। लेकिन इन जगहों से भी अनुसूचित जाति की सीटों से चुनाव लड़ रहे भोक्ता जाति के उम्मीदवारों का तनाव व भय कम नहीं हुआ है। वे चुनाव जीत जाते हैं तब भी यदि प्रतिद्वंद्वी कोर्ट में मामला ले जाते हैं तो उनकी परेशानी बढ़ सकती है। दूसरे राज्यों से आई बहुओं का पंचायत चुनाव लड़ने का सपना भी पूरा नहीं हो सका।
कार्यालय में बैठकर तय कर दिया सीटों का आरक्षण
अधिकारियों की लापरवाही के और भी कई उदाहरण भरे पड़े हैं। चुनाव के पूर्व कई स्तर पर तैयारियां की जाती हैं। तैयारियों की समीक्षा होती है एवं सब कुछ ठीक-ठाक पाकर सीटों का आरक्षण तय होता है। लेकिन धरातल पर देखें तो कई जगहों पर ऐसा प्रतित होता है कि कार्यालय में बैठे बाबुओं ने लाटरी लगाकर सीटों का आरक्षण तय कर दिया। जहां अनुसूचित जाति एवं जनजाति का कोई भी मतदाता नहीं है, उन सीटों को एससी व एससी महिला के लिए आरक्षित कर दिया। नतीजतन वहां कोई नामांकन नहीं हुआ।
दोषी अफसरों को दंडित करने की हो रही मांग
छह वर्षों बाद राज्य में चुनाव हो रहा है यह खुशी की बात है। क्योंकि पंचायत चुनाव न होने से कई विकास योजनाओं पर असर पड़ रहा था। कुछ लोगों के लिए चुनाव प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता। लेकिन व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए थी कि लोकतंत्र के इस महापर्व में ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी हो। ऐसे लापरवाह अधिकारियों को चिह्नित कर कार्रवाई की जानी चाहिए जो इस दिशा में ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे। भोक्ता समाज के कई लोगों ने बातचीत में कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चाहिए कि दोषी अफसरों को चिह्रित कर कार्रवाई करें। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री इस मामले से अवगत नहीं हैं। पिछली बार कैबिनेट की बैठक में कई मंत्रियों ने इस समस्या से मुख्यमंत्री को अवगत कराया था। यह दीगर बात है कि इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया।
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