धर्म भी अजीब है और शासन व्यवस्था कमजोर पड़ जाए तो कभी कभी इसका पालन भी अजीब तरीकों से होने लगता है। कहा जा सकता है कि कम से कम शिक्षा, खासकर बच्चों की शिक्षा को तो धार्मिक आडम्बरों से दूर रखना ही चाहिए, लेकिन झारखण्ड में शिक्षा के अनेक मंदिरों में बच्चों को धर्म की अजीब घुट्टी पिलाई जा रही है।
सब जानते हैं- झारखण्ड से कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि वहां एक स्कूल में नियमित प्रार्थना बंद करवा दी गई है और प्रार्थना के वक्त हाथ जोड़ने की भी मनाही है। अब खबर मिली है कि राज्य के पांच जिलों में ऐसे कम से कम 70 स्कूल हैं जहां हाथ जोड़कर प्रार्थना करना प्रतिबंधित है।
बच्चे हाथ जोड़ने की बजाय हाथ बांधकर प्रार्थना करते हैं। यही नहीं, ये सब सामान्य सरकारी स्कूल हैं, लेकिन गांव वालों ने इनकी दीवार पर उर्दू स्कूल लिख दिया है और ये सब के सब इसी हिसाब से चल रहे हैं या चलाए जा रहे हैं।
कहते हैं बात जब फैली और ऊपर तक गई तो सख्ती हुई। स्कूल के नाम के आगे लिखा हुआ उर्दू शब्द हटा दिया गया। कुछ दिन ऐसा चला फिर गांव वालों ने वापस स्कूल के नाम के आगे उर्दू जोड़ दिया। सरकारी अफसरों से गांव वालों ने साफ कह दिया है कि स्कूल तो हमारी मर्जी के अनुसार ही चलेगी वर्ना बंद कर दो। आप बंद नहीं करेंगे तो हम अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर देंगे।
इन स्कूलों में से कुछ के मास्टर जो पांच-पांच साल से यहां लगे हुए हैं, से पूछा गया तो उन्होंने कहा- जब से हम आए तब से यहां ऐसा ही चल रहा है। कोई बच्चा प्रार्थना के दौरान हाथ नहीं जोड़ता। स्कूल की छुट्टी भी जुमे यानी शुक्रवार को करनी पड़ती है। हम लोग स्कूल आते हैं लेकिन कोई बच्चा इस दिन नहीं आता!
अगर हर धर्म के लोग इस तरह अपने धर्मों के अनुसार सरकारी स्कूलों पर हुकूमत करने लगे तो मौजूदा व्यवस्था का क्या होगा, आसानी से समझा जा सकता है। आखिर हमारा प्रशासन तंत्र ऐसी कौनसी नींद में गाफिल रहता है कि उसे वर्षों तक यह पता ही नहीं चलता कि स्कूलों-कॉलेजों में हो क्या रहा है।
अगर पांच-पांच साल तक प्रशासन को यही पता न चले कि उनके क्षेत्रों के स्कूलों का स्टेट्स ही बदल गया है तो ऐसे शिक्षा विभाग और उसे चलाने वाले अफसरों को बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता! आखिर वे दफ्तरों में बैठकर क्या कर रहे हैं?
… और केवल शिक्षा विभाग ही नहीं, उस विभाग के मंत्री, स्वयं मुख्यमंत्री और पूरी सरकार ही क्या कर रही है? इन गांवों, इन स्कूलों में कम ही सही, जितने भी दूसरे धर्म के बच्चे हैं उनका क्या कसूर है? उनपर दूसरे धर्म के रीति- रिवाज क्यों लादे जा रहे हैं? उनकी शिक्षा-दीक्षा को क्यों जुमे की भेंट चढ़ाया जा रहा है?
क्या झारखण्ड की पूरी सरकार में इस तरफ सोचने वाला कोई नहीं है? क्या पूरे कुएं में भांग घुली है? क्या शासन व्यवस्था नाम कोई चीज बची ही नहीं? अगर बची है तो यह सब क्यों और कैसे हो रहा है, वर्षों से! कोई तो जवाब दे!
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